कवि: ज़फ़र शेरशाहाबादी
बहुत आला नसब मेरा है मैं हूं शेरशाबादी
मुझे तो यह खुशी बेहद है मैं हूं शेरशाबादी
बहुत अंदर तलक दलदल में मैरी क़ौम जा पहुंची
तो अब मुझको ही कुछ करना है मैं हूं शेरशाबादी
हर एक सु अब अंधेरा गरचे मेरा रास्ता रोके
अंधेरों से मुझे डर क्या है मैं हूं शेरशाबादी
हमी थे क़ौम के वाली हमी मेअ्मार कहलाए
मेरे अजदाद का फ़िदया है मैं हूं शेरशाबादी
निराले तौर है इस क़ौम के अंदाज़ लासानी
निराली क़ौम की हर शय है मैं हूं शेरशाबादी
इन्हें बस रोशनी की एक रमक झिंझोड़ सकती है
मेरी यह क़ौम ग़फलत में है मैं हूं शेरशाबादी
हलावत अपनी बोली की वही बस जानता होगा
कोई ग़ुरबत में जो बोले है मैं हूं शेरशाबादी
जो अपनी क़ौम से बदज़न हैं वह ख़ुद से कभी पूछें
कि उनका दिल यही कहता है मैं हूं शेरशाबादी
ज़ फर उठ्ठो कमर कस लो कहीं ना देर हो जाए
मुझे तारीख़ अब लिखनी है मैं हूं शेरशाबादी